#वीरवर मारवाड़ रक्षक दुर्गादास जी की हत्या का असफल प्रयास ःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःः
#औरगंजेब ने अपने पोते बुलंद अख्तर ओर पोती सफीयतुनिशा की दुर्गादास द्वारा 14वर्ष परविश के बाद सकुशल दरबार में वापसी के बाद एक समझोते के तहत दुर्गादास व उनके परिवार के सदस्यों को जागीरे प्रदान की गई जो 1ःदुर्गादास आसकरणोत 3000 जात , 2000 अवससार,
2 खींवकरण आसकरणोत 800जात, 500अवसार
3तेजकरण दुर्गादासोत 500जात ,300अवसार
4 मेहकरण दुर्गादासोत 500जात ,300 अवसार
5 अभयकरण दुर्गादासोत 400जात 200अवसार
6 अनूपकरण तेजकरणोत 800जात 200अवसार
7 दलकरण जसकरणोत 400जात 200अवसार
8 देवकरण जसकरणोत 200जात ,200अवसार की जागीरे (6600जात व 3900अवसार )
अजीतसिह व अन्य सरदारों को
महाराजा अजीतसिह 1500 जात ,500अवसार
2 राठौड़ मुकंनदास 600जात ,200अवसार
3 राठौड़ रघुनाथ सिह 500 जात ,300 अवसार
4 भाटी दूदा 300 जात 100अवसार
5 राठौड महासिह 200 जात ,100 अवसार
6 राठौड़ मोहकम सिह 200 जात, 100 अवसार
7 राठौड़ प्रेमसिंह 150 जात, 50 अवसार
8 जोशी गिरधर सांचौरा 200जात 100अवसार( 3050जात ,1450अवसार)
#औरगंजेब ने जानबूझकर एक कूटनीतिक चाल के तहत महाराजा अजीत सिह से ज्यादा जागीरी दुर्गादास उनके परिवार को दी ताकी दोनो में विवाद की स्थिति पैदा हो ओर उसका फायदा उठाया जायें ।
वीरदुर्गादास को मेड़ता की जागीर दी गई लेकिन औरगंजेब दुर्गादास को मारवाड़ से दूर रखकर धोखे से मारना चाहता था अतः उन्हें पाटन का फोजदार नियुक्त किया ओर शाहजादे आजम को अहमदाबाद का सुबेदार नियुक्त कर दुर्गादास को मारने या किसी दुसरे से मरवाने का जिम्मा सौंपा ।लेकिन दुर्गादास औरगं की हर चाल से सावचेत थे।
चार साल की फोजदारी में आजम को मौका नही मिला तो उसने पाटन के पूर्व फौजदार व अपने विश्वत सफदर खां बाबी को दुर्गादास के कत्ल या कैदी बनाने का जिम्मा सौपां तथा 18 नवम्बर 1705 ई. को संदेश भेजा की अतिशीघ्र अहमदाबाद हाजिर हो ।आदेश मिलने पर दुर्गादास ने पाटन से चलकर अहमदाबाद से तीन मील दूर साबरमती के तट पर बडजगांव में डेरा डाला तथा आजम ने हथियारों से लैस विश्वत सैनिको को दरबार में नियुक्त किया ।दुर्गादास ने बडज पहूकर कोई उत्सुकता नही दिखाई नित्यकर्म कर भोजन आदि से निवृत हो दरबार में जाना उपयुक्त समझा ,क्योंकि एक दिन पूर्व का एकादशी का उपवास अतः तय किया कि भोजन करने के बाद ही आजम से मिलेगें।उधर आजम बहुत उतावला हो रहा था इतनना पास आकर भी कही शिकार हाथ से न निकल जाये।
उसने एक के बाद एक चार संदेश अतिशीघ्र उपस्थित होने के आने से दुर्गादास को धौखे की आशंका हुई तथा दुर्गादास का चितिंत होना भी वाजिब था क्योंकि उनके परिवार की सभी महिलाओं का काफिला भी साथ था।
अतः यौद्धाओं के लिए युद्ध तो होते रहते है लेकिन इन युद्धों में महिलाओं की अस्मिता दाव पे नही लगाई जा सकती अतः उन्होंने बिना उपवास खोले ही तुरंत अपना सामानव असबाव साथ में लेकर खेमे मे आग लगाकर अपने साथियों के साथ मारवाड़ की तरफ प्रस्थान कर लिया।जब आजम को पता चला तो बाबी को दुर्गादास को जिंदा मा मुर्दा पकड़कर लाने का आदेश दिया ।
#अहमदाबाद से 14 मील #पाटन जाने वाले मार्ग पर दोनो की सेनाओं के बीच भंयकर मुठभेड़ हुई।
बाबी की सेना को निरंतर नजदीक आती देख दुर्गादास राठौड़ के पुत्र महेकरण ने कहा आपके बच निकलने के लिए सैना का रास्ता रोकना पडेगा।उस दुर्गादास का 18 वर्षीय पोता अनोपकरण जो तेजकरण का पुत्र था दादोसा आप आगे का मार्ग तय कर तुरंत मारवाड़ पहुंच जाईये । क्योंकि परिवार की महिलाओं का उस काफिले में होने के कारण दुर्गादास चिंतिंत था , कि कंई युद्द में महिलाओं के साथ अनहोनी न हो जाये।तब तक हम शत्रु सेना का मार्ग रोकते है ।वैसे भी बिना घाव खाये युद्ध भूमि छोड़ना लज्जाजनक है।
परिस्थितियों को देख कर दुर्गादास ने अपने चुनिंदा साथियों के साथ आगे का मार्ग तय किया ।अनोपकरण अपने दोनो काका मेहकरण व अभयकरण के साथ ही रघुनाथ भाटी ,दुरजनसिह ,मोहकम सिह ,हरनाथ ,गिरधर सांचोरा ने राठौड़ी सेना के साथ बाबी की सैना का मार्ग रोका ।इस मुठभेड़ में दोनो पक्षों की भंयकर क्षति हुई ।
अनोपकरण ने अदभूत वीरता दिखाई परंतु अंत में वीरगति को प्राप्त हुआ।
कर्नल टाँड ने इस घटना का मार्मिक जिक्र करते हुए लिखा है कि #मेहकरण व #अभयकरण अत्यधिक घायल होने के बाद भी युद्ध भूमि से निकलने मे सफल हो गये लेकिन #अनोकरण ने #वीरगति प्राप्त की ।
पाटन के युद्ध में दुर्गादास को करणोत वंश के पांच वीरों का बलिदान देना पडा।
दुर्गादास के 18 वर्षीय पोत्र अनोपकरण के आत्म बलिदान के कारण यद्यपि दुर्गादास तो पाटन से सुरक्षित बाहर निकल गये ।लेकिन #अनोपकरण की पत्नी जो मात्र 14 वर्ष की थी जब #समदडी में नाई उनकी पाग लेकर पहुचा तो #चौहानजी तत्काल सती होने के लिऐ प्रेरित हुई ।
इस युद्ध में पंच रकम करणोत के नाम से अनोपकरण, मानसिह जोगीदासोत ,मोहकम सिह उदावत,सबला जोगीदासोत देवडा ओर पड़िहार बलू काम आये*(वीरगति )
दुर्गादास अनोपकरण पंच रकम करणोत की क्षति से से बहुथ व्यथित हुऐ। समदडी पहुच कर एक वर्ष के भीतर ही अपने पौत्र भंवर अनोपकरण की स्मृति मे 16 स्तम्भों की भव्य छतरी का निर्माण करवाया।इनके साथ ही मानसिह जोगीदासोत की पुतली का निर्माण करवाया।
समदडी स्थित ये छतरी दादा वीरदुर्गादास राठौड़ के अजीतसिह को मारवाड़ का शासक बनाने के प्रण को पुरा करने के लिऐ दादा की जान बचाने के लिए पोते के द्वारा अपने प्राणों के बलिदान देने की साक्षी है
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