पीथळ और पाथल

राजस्थान की वीर प्रसूता भूमि में अनेक ऐसे वीर पुरुषों ने जन्म लिया है जिनके एक हाथ में तलवार रही, तो दूसरे हाथ में कलम| इन वीरों ने इतिहास में अपनी तलवार के जौहर दिखाकर वीरता के उत्कृष्ट उदाहरण पेश किये, वहीं अपनी कलम से उत्कृष्ट साहित्य रचकर साहित्य साधना की| राजकुमार पृथ्वीराज बीकानेर का नाम इतिहास में ऐसे ही महापुरुषों की श्रंखला में लिपिबद्ध है, जिन्होंने अपनी वीरता के साथ साहित्य को नया आयाम दिया| साहित्यकारों व इतिहासकारों ने उनकी वीरता के साथ उनमें उच्चकोटि की विलक्षण साहित्यिक प्रतिभा की भरसक सराहना की है|
साहित्यक जगत में पीथळ के नाम से प्रसिद्ध पृथ्वीराज बीकानेर के राव कल्याणमल के छोटे पुत्र थे| जिनका जन्म वि.सं. 1606 मार्गशीर्ष वदि 1 (ई.सं. 1549 ता, 6 नवम्बर) को हुआ था। इतिहास के पन्नों पर उनका चरित्र बड़े आदर्श और महत्त्वपूर्ण रूप से अंकित है| वे बड़े वीर, विष्णु के परम भक्त और उंचे दर्जे के कवि थे। उनका साहित्यिक ज्ञान बड़ा गंभीर और सर्वांगीय था। संस्कृत और डिंगल साहित्य के वे विद्वान थे। इतिहासकार कर्नल टॉड पृथ्वीराज के बारे में लिखते है- "पृथ्वीराज अपने युग के सर्वाधिक पराक्रमी प्रमुखों में से एक था तथा वह पश्चिम के प्राचीन ट्रोबेडूर राजाओं की भाँती युद्ध-कला के साथ ही कवित्व-कला में भी निपुण था| चारणों की सभा में इस राजपूत अश्वारोही योद्धा को एक मत से प्रशंसा का ताल-पत्र दिया गया था| प्रताप के नाम से उसके मन में अगाध श्रद्धा थी|" (कर्नल टॉड कृत राजस्थान का पुरातत्व एवं इतिहास, पृष्ठ 359.)
इतिहासकार डा. गोपीनाथ शर्मा, अपनी पुस्तक "राजस्थान का इतिहास" के पृष्ठ-322,23. पर लिखते है-"पृथ्वीराज, जो बड़ा वीर, विष्णु का परमभक्त और उच्चकोटि का कवि था, अकबर के दरबारियों में सम्मानित राजकुमार था| मुह्नोत नैणसी की ख्यात में पाया जाता है कि बादशाह ने उसे गागरौन का किला जागीर में दिया था| वह मिर्जा हकीम के साथ 1581 ई. की काबुल की और 1596 ई. की अहमदनगर की लड़ाई में शाही सेना में सम्मिलित था|" अकबर के समय के लिखे हुए इतिहास 'अकबरनामे' में उनका नाम दो-तीन स्थानों पर आया है अकबर के दरबार में रहते हुए पृथ्वीराज अकबर के सबसे बड़े शत्रु महाराणा प्रताप के परमभक्त थे| एक दिन अकबर ने उन्हें बताया कि महाराणा प्रताप उसकी अधीनता स्वीकार करने को राजी हो गये है, तब उन्होंने अकबर से कहा कि यह नहीं हो सकता, यह खबर झूंठ है, यदि आज्ञा हो तो मैं पत्र लिखकर सच्चाई का पता कर लूँ| और इस तरह उन्होंने बादशाह की अनुमति लेकर उसी समय निम्नलिखित दो दोहे बनाकर महाराणा के पास भेजे—

पातल जो पतसाह, बोलै मुख हूंतां बयण । 
मिहर पछम दिस मांह, ऊगे कासप राव उत॥1 ॥ 
पटकूं मूंछां पाण, के पटकूं निज तन करद। 
दीजे लिख दीवाण, इण दो महली बात इक'॥2 ॥

आशय- महाराणा प्रतापसिंह यदि अकबर को अपने मुख से बादशाह कहे तो कश्यप का पुत्र (सूर्य) पश्चिम में उग जावे अर्थात् जैसे सूर्य का पश्चिम में उदय होना सर्वथा असम्भव है वैसे ही आप (महाराण) के मुख से बादशाह शब्द का निकलना भी असम्भव है|
हे दीवाण (महाराणा) मैं अपनी मूंछों पर ताव दूं अथवा अपनी तलवार का अपने ही शरीर पर प्रहार करूं, इन दो में से एक बात लिख दीजिये| 
इन दोहों का उत्तर महाराणा ने इस प्रकार दिया— 

तुर्क कहासी मुखपती, इणू तन सूं इकलिंग। 
ऊगै जांही ऊगसी, प्राची बीच पतंग॥1 ॥ 
खुसी हूंत पीथल कमध, पटको मूंछां पाण। 
पछटण है जेतै पतौ, कलमाँ सिर केवाण ॥2 ॥ 
सांग मूंड सहसी सको, समजस जहर सवाद। 
भड़ पीथल जीतो भलां बैण तुरक सुं वाद ॥3 ॥ 

आशय- (भगवान) 'एकलिंगजी' इस शरीर से (प्रतापसिंह के मुख से) तो बादशाह को तुर्क ही कह्लावेंगे और सूर्य का उदय जहाँ होता है वहां ही पूर्व दिशा में होता रहेगा| 
हे वीर राठौड़ पृथ्वीराज ! जब तक प्रतापसिंह की तलवार यवनों के सिर पर है तब तक आप अपनी मूंछों पर खुशी से ताव देते रहिये|
(राणा प्रतापसिंह) सिर पर सांग का प्रहार सहेगा, क्योंकि अपने बराबर वाले का यश जहर के समान कटु होता है। हे वीर पृथ्वीराज! तुर्क (बादशाह) के साथ के वचनरूपी विवाद में आप भलीभांति विजयी हों। 

यह उत्तर पाकर पृथ्वीराज बहुत प्रसन्न हुआ और महाराणा प्रताप का उत्साह बढ़ाने के लिए एक गीत लिख भेजा| इस तरह पृथ्वीराज ने अपनी ओजस्विनी कविता के द्वारा महाराणा प्रताप का स्वतंत्रता संग्राम हेतु उत्साहवर्धन किया व उन्हें कर्तव्य पथ पर डटे रहने को प्रेरित कर उन्नत कार्य किया| 


Comments

  1. जय-जय पीथल और पाथल बीकानेर के महाराजा थे पृथ्वीराज सिंह राठौड़ और पाथल महाराणा प्रताप का नाम है

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  2. Kesri singh barath ki rachna h ye pithal or pathal.. Halaki kesri ji bdi gyani kavi h inka lakh dhaynwad inhone apni kahanio se jan jan ke andar partap ki bat sunai..
    Lekin
    Ek jgh kesri ji galat likh gye halaki wo kavi h or kavi ka ithihas se soruce se nata na rhta ho fir b galat bat hajam nhi hoti hme shahb
    Y janab apni isi kavita me kahte hai ki haldighati k bad maharana partap ki halat itni kharab ho gyi ki ek din ek bilav unke bete amarsingh k hath se roti chin ke le jata hai or partap is seen ko dekhkar rote hai.. Y bat aap sabne b bachpan ki kahanai me b suni hogi jarur...
    Ab suno fact
    Haldighati hua 1576
    Amarsingh ka janam hua 1559 ( udaipur ki stahpna inhi k janm ke time hui)
    To haldighati k time amarsingh ki umr kya hui hogi ( 17 saal)
    Aap sochiye 17 saal ke rajput ke hath se koi bilav roti chin skta h 🤣
    Or amarsingh ki bahaduri ke kisse to bhut famous h wo apne pita ke saman bahadur tha
    Haldighati k 6 saal bad diver ka yudh hota h usme amarsingh akbar k uncle sultan khan ko mar deta hai)
    Diver ka yudh hme btya nhi jata jisme partap ne muglo ki bhut bdi sena ko haraya tha..
    To janab kesri singh ji se bs isi bat se naraj h hum

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    1. 👍👍👍👍🙏🙏you are right

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    2. Sir ye rachna kesri singh bahrth ki nhi Sujangarh ki dhrti pr jnme suprshidh kalamkaar shree kanheyalal sethiya ji ki rchna hai 🙏🏻

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