जायसी का 'पद्मावत' बताता है कि अलाउद्दीन खिलजी एक बहादुर योद्धा था। उसकी बहादुरी और प्रेमी होने की कल्पना पर हमारे इतिहासकारों ने ऐसी मोहर चिपकाई कि कुछ पत्रकार इस कथा की आड़ में अपना एजेंडा सेट करने लगे। घोर विडंबना है कि जिस पद्मावती की गाथाएं राजस्थान के मंदिरों की दीवारों पर लिखी हुई हैं, उन्हें नज़रअंदाज़ कर हमारे इतिहासकारों ने जायसी को प्राथमिकता देकर इतिहास दूषित कर डाला। मेवाड़ की सीमा के बाहर अलाउद्दीन के शाही कैम्प में जो कुछ घटा, 'पद्मावत' में वर्णित करने की शक्ति जायसी में नहीं थी। एक आततायी की नंगी सच्चाई वो अपने दो टके के काव्य में नहीं बता सकता था।
हम सभी ये जानते हैं कि अलाउद्दीन की इतनी औकात नहीं थी कि चित्तौड़ के किले में घुसकर पद्मावती को हर ले जाए इसलिए उसने धोखे से राजा रतन सिंह का अपहरण कर लिया था। मालिक मोहम्मद जायसी ने 'पद्मावती को दर्पण में देखने ' वाली बात इसलिए काव्य में डाली कि उसकी हैवानियत इस बात के पीछे छुप जाए। खिलजी ने मुगलों की तरह एक ही मांग रखी थी 'अपना सारा सोना और औरते हमारे हवाले करो'।
'मेवाड़ की सीमा के बाहर खिलजी के शाही कैम्प के ऊपर से सूरज अभी उगा ही था कि मुख्य दरवाजे से संदेश आया कि पालकियां आ पहुंची हैं। खिलजी ने आदेश दिया कि पालकियों की गिनती की जाए। सारी महिलाओं को उनकी सुंदरता के अनुसार वरीयता देकर पंक्ति में खड़ा कर दिया जाए। पद्मावती को सबसे आगे खड़ा किया जाए।
पालकियां भारी सुरक्षा में कैम्प के भीतर लाई गई। पालकियां जमीन पर रखते ही उनमे से बाहर आया खिलजी का काल। इनमे राजपूत योद्धा छुपकर बैठे थे। इन्होंने देर न करते हुए खिलजी की सेना को काटना शुरू कर दिया। इस अप्रत्याशित आक्रमण की अपेक्षा उन्होंने नहीं की थी। राजपूत सैनिक दो दलों में बंट गए। बादल के नेतृत्व में एक दल राजा रतन सिंह को खोजने निकल पड़ा और दूसरा दल वीर गोरा के साथ खिलजी को ढूंढ रहा था।
कुछ देर बाद बादल ने रतन सिंह को खोज निकाला। राजा को सुरक्षित ले जाने से पहले अपने चाचा गोरा को आखिरी बार प्रणाम किया। वे दोनों जानते थे कि वे जीवन मे अंतिम बार एक दूसरे को देख रहे थे। राजा को सुरक्षित निकाला जा चुका था और गोरा अब दोनों हाथों में तलवार लिए खिलजी की सेना को सब्जी की तरह काट रहा था। खिलजी के शाही कैम्प में भगदड़ का माहौल बन गया।
इस बीच खिलजी अपने शाही हरम में लेटा हुआ था। चूंकि उसके कैम्प में कत्लेआम आम बात थी इसलिए बाहर हो रहे शोर पर उसने इतना ध्यान नहीं दिया था। वो सोच भी नहीं सकता था कि मौत 'गोरा' के रूप में बिल्कुल समीप खड़ी है। जैसे ही गोरा खिलजी के तंबू में घुसा, खिलजी हड़बड़ाकर उठ खड़ा हुआ। उसने वहां मौजूद एक स्त्री को गोरा की ओर धकेल दिया। वो जानता था कि राजपूत योद्धा स्त्री पर तलवार नहीं उठाते।
खिलजी अपने हरम में जान बचाने के लिए दौड़ रहा था। उस कथित दिलेर खिलजी ने बचने के लिए एक अबला नारी को ढाल बना लिया था। कहते हैं खिलजी उस कद्दावर राजपूत को देखकर ही भयाक्रांत हो गया था। भागते-भागते उसके मुंह से कभी अल्लाह निकलता तो कभी वह गोरा से उसकी जान बख्श देने की विनती करता रहा।
गोरा समझ गया था कि स्त्री की आड़ लेकर खिलजी बचकर निकल जाएगा। तब तक अन्य सैनिक खिलजी की मदद को आ गए थे। खिलजी ने जैसे ही छलांग मारकर अपने सैनिकों के पास पहुंचने का प्रयास किया, गोरा की तलवार का बिजली सा वार उसके पिछवाड़े को चीरता चला गया।
खिलजी खून में लथपथ जमीन पर गिर पड़ा। इससे पहले कि राजपूती तलवार उसका अंत कर पाती, देर हो चुकी थी। गोरा को चारों ओर से घेर लिया गया था। अंतिम समय मे मरते-मरते गोरा के अंतिम शब्द थे ' जय एकलिंग जी'।
इसके बाद खिलजी कभी सीधा चल न सका। कभी युद्ध अभियानों में हिस्सा नहीं ले सका। अब वो न अय्याशी के लायक रहा न शासन करने के। उसका बाकी जीवन एक विक्षिप्त की तरह बीता। राजपुताना तलवार का स्वाद उसे जीवनभर याद रहा। खिलजी वो सुबह कभी नहीं भुला जब गोरा को सामने देखकर उसने मूत्र विसर्जन कर दिया था।
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