राव दूदाजी Rao Duda ji

राव दूदाजी - राव दूदाजी का जन्म जोधाजी की सोनगरी राणी चाम्पाकँवर की कोख से 15 जून 1440 को हुआ था। पौराणिक कथाओं के अनुसार मानधाता नामक राजा ने मेड़ता नगर की स्थापना की थी, जिसका प्राचीन नाम मेड़तपुर या मेड़न्तक था। मेड़ता नगर 1318 ई. के बाद उजड़ कर वीरान होगया था तब वरसिंह व दूदाजी ने मिलकसर मेड़ता नगर को ने आबाद किया। बरसिंह व दूदाजी ने मिलकर परमार [सांखला- परमार राजपूतों की एक शाखा] राजपूतों से चौकड़ी, कोसाणां और मादलिया आदी गांव जीतकर अपने अधिकार में किये। इसके बाद दूदा अपने भाई राव बीका के पास बीकानेर चले गए जहाँ काफी समय तक रहे। बीकानेर के मार्ग में दूदा की भेंट सिद्ध पुरुष जाम्भोजी से हुई जिसने मेड़ता प्राप्ति का आशीर्वाद दिया। 
हिसार के सूबेदार सारंगखाँ द्वारा राव बीकाजी के चाचा कांधलजी को मार डाला गया। तब राव जोधाजी, राव बीकाजी और दूदाजी ने मिलकर सारंगखाँ पर आक्रमण किया। सारंगखाँ युद्ध में मारा गया और उसकी सेना परास्त हुई। इस युद्ध में दूदा जी ने अद्भुत वीरता का प्रदर्शन किया था।
जैतारण के स्वामी मेघा सींधल के पिता द्वारा आसकरणजी राठौड़ [शक्तावत] के वध का बदला लेने के लिए राव जोधाजी ने राव दूदाजी को भेजा। दूदाजी व मेघा सीधल के बीच एकाकी युद्ध हुआ। इसमें दूदाजी ने मेघा का सिर धड़ से अलग कर अपनी युद्ध कला का परिचय दिया। वरसिंह ने 1490 ई. में सांभर पर आक्रमण किया था । सांभर के हाकिम मल्लू खां ने इसका बदला लेने की सोच मेड़ता पर आक्रमण कर दिया, वरसिंह मेड़ता छोड़कर जोधपुर चला गया। मेड़ता को मल्लू खां ने लूटा और उसके सैनिकों ने गौरीपूजा के लिए जाती महिलाओं का अपहरण कर लिया। राव दूदाजी को जब इस घटना का पता लगा तो वे सेना सहित जोधपुर पहुँचे और जोधपुर से सातलजी, सूजाजी और वरसिंह को साथ लेकर राव दूदाजी सेनासहित बीसलपुर पहुँचे। युद्ध कला के अनुभवी वरजांगजी ने भींवोतजी राठौड़ को अपने साथ मिला कर रात्रि के समय शत्रु मल्लू खां की सेना पर अचानक हमला कर दिया। मल्लूखाँ पराजित हुआ और मीर घुड़ला मारा गया। दूदाजी के पराक्रम व रण कौशल की इससे बड़ी ख्याति हुई। दूदाजी ने शत्रु सेना को चीरते हुए सारंगखां का पीछा कर उसका हाथी छीन लिया था।
मल्लूखां ने माण्डू के बादशाह से सैनिक सहायता प्राप्त कर कोसाणा की हार का बदला लेने के लिए मेड़ता पर आक्रमण कर दिया। वरसिंह जब समझोते के लिए अजमेर गया तो धोखे से मल्लू खां ने उसे बन्दी बना लिया। इसकी सूचना मिलते ही राव बीका और जोधपुर के राव सूजा की संयुक्त  सेना ने चढ़ाई की जिसकी सूचना मिलते ही मल्लू खां ने सुलह कर वरसिंह को रिहा कर दिया। मल्लू खां ने अजमेर में वरसिंह को जहर दे दिया था। जिसके कारण छह माह बाद वरसिंह का देहान्त हो गया। वरसिंह का बड़ा पुत्र सींहा मेड़ता का शासक बना जो अयोग्य एवं विलासी था। सींहा की मां ने दूदा को बीकानेर से बुला कर मेड़ता का शासन प्रबन्ध उन्हें सौंप दिया और आधी आय सींहा को देने का फैसला किया गया। इस प्रकार मेड़ता बचा लिया गया। मेड़ता राव दूदाजी और सीहाजी में बंटकर आधा-आधा रह गया। राव दूदाजी ने सींहाजी की हरकतों को दो वर्ष तक देखा और सुधार न देखकर सींहाजी को जागीर रांहण का पट्टा देकर रांहण भेज दिया। सींहाजी को जागीर रांहण भेजकर राव दूदाजी सन् 1495 में मेड़ता के पूर्ण स्वामी बन गए।”राव दूदाजी के दो राणियों से एक पुत्री और पांच पुत्र हुए थे -:
01 – वीरमदेव - राव दूदाजी के उत्तराधिकारी बनें।
02 - रायमलजी - मारवाड़ में भड़ाना, बांसणी, जीलारी ठिकाणे है। मेवाड़ राज्य में हुरड़ा के कुछ ग्रामों में जागीरी है।
03 - रायसलजी 
04 - रतनसिंह - इनके कोई पुत्र नहीं हुआ। केवल एक पुत्री हुई जो मीरांबाई के नाम से विश्वविख्यात हुई। रतनसिंह को राव दूदा ने जागीर में 12 गांव प्रदान किये
थे। जिनके नाम -:नींबडी, पालड़ी, हकधर, नूंद,आकोदिया, मोटास, पीमणियां, डूमांणी, सुंदरी, कुड़की, नैया, मांझी-बाझोती थे।रतनसिंह का विवाह मेवाड़ के
गोगुन्दा के झाला सरकार कहलाएं हमीर की पुत्री कुसुब कंवर से हुआ था। परोहित हरनारायणत्री ने मीरां की माता का नाम ‘वीर कुंवरी’ तथा नाना का नाम गोगुदां के झाला सुलतानसिंह लिखा है। मीरांबाई का विवाह चित्तौड़ के प्रसिद्ध वीरवर महाराणा संग्रामसिंह के युवराज भोजराज से हुआ। रत्नसिंह को निर्वाह के लिए 12 बारह गांव दिए। वि.सं. 1584 चौथ शुक्ला 14 [1526 ई.] 17 मार्च को बयाने में माहाराणा संग्रामसिंह का मुगल बादशाह बाबर से प्रसिद्ध युद्ध हुआ था। उसमें वे मुसलमानों की बड़ी वीरता से युद्ध करके काम आए।
05 - पंचायणजी -नि:संतान रहे।
06 - गुलाबकँवर

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