कल्लाजी राठौड़ Kalla ji Rathore

कल्लाजी राठौड़ का जन्म का आश्विन शुक्ल 8 (दुर्गाष्टमी को)विक्रम संवत 1601 को राजस्थान प्रान्त के मेड़ता नगर के राजपरिवार में हुआ था। कल्लाजी के पिताजी का नाम  श्री आसासिंह जो राव जयमलजी के छोटे भाई थे माता का नाम श्वेतकँवर था मेड़ता के राव जयमलजी के छोटे भाई थे। आसासिंह को अचलसिंहजी के नाम से भी जाना जाता था। प्रसिद्ध योगी भैरवनाथ से इन्होंने योग की शिक्षा पायी थी।
 मीरा बाई कल्लाजी की बुआ लगती थी।कल्लाजी के जन्म का नाम केसरसिंह था। अचलसिंहजी
सामियाना जागीर के राव थे।कल्लाजी के छोटे भाई का नाम तेजसिंह था। कल्ला जी को शेषनाग के अवतार के रूप मन जाता है क्योकि ,कहा जाता है की, इनकी माता श्वेतकँवर ने शिव पार्वती के आशीर्वाद से उन्हे प्राप्त किया था।
मेवाड़ राज्य के छप्पन परगना रनेला में शांति कायम करने हेतु व सुचारू रूप से शासन हेतु रनेला का जागीरदार घोषित किया।
कल्लाजी का विवाह शिवगढ़ [वागड़ राज्य] के राव कृष्णदास चौहान [हाड़ा] की पुत्री कृष्णकांताकँवर के साथ हुवा था। तथा तेजसिंह का विवाह राव कृष्णदास चौहान के अनुज रामदास की पुत्री चपलाकँवर के साथ हुवा था।मुगलो के साथ लड़ाई में [संवत 1624में सन् 1568] एक मुगल ने पीछें से तलवार चला कर वीर कल्लाजी का सिर काट दिया। अब बिना सिर के कल्लाजी का कंबध (कमधज) घोर संग्राम करता हुआ दोनों हाथों से तलवार लिये मुगलों की फौज को चीरता कल्ला का कंबध योग व देवी शक्ति और गुरु आशीर्वाद से कृष्णकांताकँवर की याद में आधुनिक मंगलवाड़, कुराबड़, बम्बोरा जगत और जयसमन्द होता हुआ रनेला जा पहुंचा। रनेला में कल्लाजी का कबंध नीले घोड़े पर सवार होकर दो हाथों में तलवार लेकर आया। वीर शिरोमणी कल्लाजी ने राजकुमारी को दिये हुये वचन को पूरा करता हुआ रनेला की पावन धरा पर अपना मानव देह त्याग दिया।
राजपुताना परम्परा के अनुसार कृष्णकांताकँवर ने सती होने के लिये कल्लाजी के कबंध को गोद में लेकर चिता में विराजमान हो गई। हाथ जोड़ राजकुमारी ने मन ही मन भगवान को स्मरण किया की मेरे स्वामी का सिर मुझको प्राप्त हो। राजकुमारी के सतीत्व की शक्ति से कल्लाजी का सिर भैरवनाथ व देवीय शक्ति की कृपा से उनकी गोद में आ गया।
तब कल्लाजी को शीश कबंध से जोड़ विक्रम संवत 1624 (26 फरवरी 1568) में कल्लाजी के भाई तेजसिंह ने ईश्वर का स्मरण कर चिता में आग लगा दी। इस प्रकार वीर शिरोमणी कल्लाजी और महासती कृष्णकांताकँवर का प्रेम आज पुरे विश्व में अमर हो गया। 

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