मित्रों आज हम आपको राजपुताना इतिहास में आज जिस वीर यौद्धा की गाथा सुनाएँगे, उन्हे मारवाड़ का महाराणा प्रताप भी कहा जाता है जिनके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं पर महाराणा प्रताप की तरह उन्होंने भी कभी मुगलों के आगे अपना सर नही झुकाया।हालाँकि इतिहासकारों ने उनके संघर्ष और स्वाभिमान को महत्व नही दिया।
मारवाड़ के राणा प्रताप "राव चंद्रसेन जी राठौड़" का स्मारक आज जर्जर अवस्था में है|
राव चन्द्रसेन मारवाड़ के राजा मालदेव के पुत्र थे। ये महाराणा प्रताप के समकालीन थे। इनकी योग्यता को देखकर मालदेव ने छोटा होने के बावजूद इन्हें ही अपना उतराधिकारी नियुक्त किया।
इससे उनके भाई रामसिंह और उदयसिंह उनसे रुष्ट हो गये और अकबर से मिल गये।
अकबर ने इन्हें अपने अधीन करने के लिए कई बार सेना भेजी। पर इस वीर ने कभी भी अपना सर अकबर के आगे नही झुकाया।
ज्यादा दबाव पड़ने पर चन्द्रसेन ने जोधपुर छोडकर सिवाना में डेरा जमा लिया।और अकबर के खिलाफ युद्ध की तैय्यारी शुरू कर दी।
अकबर ने फुट डालों और राज करो कि नीति के तहत उनके भाई उदयसिंह को जोधपुर का राजा घोषित कर दिया।और हुसैनकुली को सेना लेकर सिवाना पर हमला करने के लिए भेजा,पर उस सेना को चन्द्रसेन के सहयोगी रावल सुखराज और पताई राठौड़ ने जबर्दस्त मात दी।
दो वर्ष लगातार युद्ध होता रहा,थक हारकर अकबर ने कई बार चन्द्रसेन को दोबारा जोधपुर वापस देने और अपने अधीन बड़ा मनसबदार बनाने का प्रलोभन दिया। पर स्वंतन्त्रता प्रेमी चन्द्रसेन को यह स्वीकार नही था।
तंग आकर अकबर ने आगरा से जलाल खां के नेत्रत्व में तीसरी बड़ी सेना भेजी,पर राव चन्द्रसेन के वीरो ने जलालखां को मार गिराया।
इसके बाद अकबर ने चौथी सेना शाहबाज खां के नेत्रत्व में भेजी,जिसने 1576 ईस्वी में बड़ी लड़ाई के बाद सिवाना पर कब्जा कर लिया,और राव चन्द्रसेन पहाड़ों में चले गये।
पुन शक्ति जुटाकर 1579 ईस्वी में राव चन्द्रसेन ने पहाड़ों से निकलकर मुगलों को खदेड़ दिया।पर दुर्भाग्य से इसके कुछ ही समय बाद संन 1580 ईस्वी में सचियाव गाँव में राव चन्द्रसेन राठौड़ का निधन हो गया।
डिंगल काव्य में राव चन्द्रसेन राठौड़ को इस तरह
श्रद्धान्ज्ली दी गयी------
""'अणदगिया तुरी उजला असमर।
चाकर रहण न डिगिया चीत।
सारै हिन्दुस्थान तणा सिर।
पातल नै चन्द्रसेन प्रवीत।।""
अर्थात----जिसके घोड़ो को कभी शाही दाग नही लगा,जो सदा उज्ज्वल रहे,शाही चाकरी के लिए जिनका चित्त नही डिगा, ऐसे सारे भारत के शीर्ष थे राणा प्रताप और राव चन्द्रसेन राठौड़।
प्रताप और चंद्रसेन कोरड़ा गांव में मिले थे, ये गांव राजस्थान में कहाँ स्थित है?
ReplyDelete1578 ई मेवाड़ के कोटड़ा गाँव में राव चन्द्रसेन की महाराणा प्रताप से मुलाकात हुई वर्तमान मे उदयपुर जिले मे है।
Deletemaharana pratap aur chandrasen mevar ke dono veer dhanya hai
ReplyDeleteMarwar ka prtap q kha jata h chandrsen ko chandrsen ne to kbi akbr se face to face ldai b nhi ki thi
ReplyDeleteTo maharana pratap ne face to face ladai nahi ladi.rahi baat Chandra sen ki unhone nagour darbaar me akbar ko mana kiya tha.ab dekh lo ki kon akbar se mila tha
DeleteJaise akbar partap ko na pkad ske na mar ske vse hi akbar chandrsen ko na pkad ske na mar paye islie vishveshnar nathe reu ne unhe marwad ka partap kha tha...
DeleteOr
Aage suno
Chandersen ko partap ka agargami bhi khte hai kyuki chandersen 1562 me hi akbar se ldne lg gya or partap 1572 me raja bane to chandrsen ko bulaya gya and partap ne unse akbar k khilaf chandersen ki radnitiya batane ko kha.. Kyuki chandersen partap se phle se akbar se bhid rhe isliye unhe partap ka agargami khte hai..
Chandersen ki bhogolic sthiti dekho desert area h chittod ke pahad or jungal h to desert me vha chapamar yudh nhi ho skta na hi chandersen ke pas bhamashah or tarasah jse danveer the blki chandersen ne to apna pokaran ka kila bhi bech dia taki uske army ka kharcha nikal ske..
Isliye chadersen ko bhula bisra raja b khte hai or sach me aj ki generation ko partap kse sath chadersen ko b yad karna chaiye
Unhone Akbar Ki ghulami sweekar nahi ki Tatha Akbar Ke nagaur darbaar ka bahiskaar kar seedha sandesh Diya ki bhale hi unhe saata se door rehna pade par Akbar Ke ghulam hokar shashk nahi banege
ReplyDeleteNice billkul shi
ReplyDelete