जोधपुर को बसाने वाला राव जोधा बड़े जीवट वाला राजा था। उसने 12 वर्ष की आयु में अपने पिता के साथ रणक्षेत्र में रहकर शत्रुओं से लड़ाई लड़ी। 1438 इस्वी में जब उसके पिता रणमल की मेवाड़ में हत्या हुई, तब जोधा अपने सात सौ राठौड़ वीरों को लेकर चित्तौड़ से जोधपुर की ओर चल दिया। मेवाड़ की सेना ने राठौड़ों का पीछा किया किंतु जोधा साहस पूर्वक मेवाड़ की सेना को छकाता हुआ केवल आठ राठौड़ों के साथ मारवाड़ पहुँचने में सफल रहा। मेवाड़ की सेना ने मण्डोर पर अधिकार कर लिया। 15 साल तक लगातार युद्ध करके जोधा ने न केवल महाराणा कुंभा के मुँह में चले गये मारवाड़ को फिर से हस्तगत कर लिया, अपितु मेवाड़ की राजकुमारी से विवाह भी किया। ई.1459 में जोधपुर दुर्ग की स्थापना करके जोधा ने मारवाड़ राज्य को हमेशा के लिये सुरक्षित बना दिया। उस समय तक जयपुर, बीकानेर, और उदयपुर जैसे शहर भविष्य के गर्भ में ही थे। जोधा के वंशजों ने पूरे 490 वर्ष तक जोधपुर पर शासन किया। उसकी रानी जसमादे हाड़ी ने रानीसर तालाब बनवाया।
जोधा के पुत्र सातल की रानी फूलां भटियाणी ने ई.1490 में फुलेलाव तालाब बनवाया। जोधा के वंशज गांगा ने जोधपुर में गांगेलाव का तालाब, गांगा की बावड़ी और गंगश्यामजी का मंदिर बनवाया। गांगा की रानी पद्मावती महाराणा सांगा की पुत्री थी जिसने जोधपुर में पदमसर तालाब बनवाया। गांगा के पुत्र मालदेव ने जोधपुर के किले का विस्तार किया तथा रानीसर के इर्द-गिर्द कोट बनवाया। उसने चिड़ियानाथ के झरने को कोट से घेरकर किले के भीतर ले लिया तथा जोधपुर के चारों तरफ शहर पनाह बनवाई। उसकी रानी स्वरूपदेवी ने बहूजी का तालाब बनवाया।
जोधा के वंशज सूरसिंह ने चांदपोल से बाहर सूरसागर तालाब, रामेश्वर महादेव मंदिर, सूरजकुण्ड बावड़ी तथा जोधपुर शहर में तलहटी के महल बनवाये। उसके उत्तराधिकारी गजसिंह ने जोधपुर दुर्ग में तोरणपोल, उसके आगे का सभामण्डप, दीवानखाना, बीच की पोल, कोठार, रसोईघर, आनंदघनजी का मंदिर, तलहटी के महलों में अनेक नये महल, सूरसागर में कुंआ, बगीचा और महल बनवाये। उसके पुत्र जसवंतसिंह ने जोधपुर में काबुल की मिट्टी और अनार के बीज एवं पौधे मंगवाकर जोधपुर में अनार का बगीचा लगवाया। जसवंतसिंह की हाड़ी रानी बूंदी नरेश शत्रुशाल की पुत्री थी, उसने जोधपुर नगर से बाहर राईका बाग नामक बाग बनवाया। इसी रानी ने कल्याणसागर नामक तालाब भी बनवाया जो बाद में रातानाडा के नाम से विख्यात हुआ। जसवंतसिंह की शेखावत रानी खण्डेला की थी, उसने जोधपुर में शेखावतजी का तालाब बनवाया। जसवंतसिंह के पुत्र अजीतसिंह ने जोधपुर दुर्ग में फतैपोल और गोपाल पोल के बीच का कोट बनवाया। उसने जोधपुर दुर्ग में नई फतहपोल, दौलतखाना, फतैमहल, भोजनसाल, ख्वाबगाह के महल, रंगसाल और छोटे जनाने महल तथा जोधपुर नगर में घनश्यामजी का मंदिर एवं मूल नायकजी का मंदिर बनवाया। उसके पुत्र अभयसिंह ने चांदपोल दरवाजे के बाहर अभयसागर तालाब तथा जोधपुर दुर्ग में चौकेलाव का कुंआ, फूल महल तथा कच्छवाहीजी का महल बनवाया। राजा बखतसिंह ने जोधपुर नगर के बीच कोतवाली का स्थान बनवाया तथा मण्डी में नाज की बिक्री के लिये चौक बनवाया। राव मालदेव के समय बनी शहर पनाह अब छोटी पड़ने लगी थी इसलिये बखतसिंह ने उसका फिर से विस्तार करवाया तथा दुर्ग में भी कई सुधार किये। उसने जसवंतसिंह के समय बना महल गिरवाकर दौलतखाने का चौक बनवाया, लोहापोल के पास के कोठारों को तुड़वाकर वहां का मार्ग चौड़ा करवाया तथा दुर्ग में जनानी डेवढ़ी की नई पोल, नई सूरजपोल और आनंदघनजी का मंदिर बनवाया।
बखतसिंह का पुत्र विजयसिंह जोधपुर के महान राजाओं में से एक था। उसने जोधपुर में गोकुलिये गुसाईंयों को लाकर बसाया जिससे जोधपुर में ब्रज की संस्कृति का प्रसार हुआ। उसने अपने राज्य में जीव हत्या का निषेध कर दिया तथा कसाईयों से उनका परम्परागत कार्य छुड़वाकर उन्हें दूसरे कामों पर लगा दिया। उसके समय जोधपुर में गंगश्यामजी का मंदिर, बालकृष्णजी का मंदिर, कुंज बिहारी का मंदिर, गुलाब सागर तालाब, गिरदीकोट, मायला बाग और उसका झालरा, फतैसागर तथा दुर्ग में मुरली मनोहरजी का मंदिर बनवाये गये।
विजयसिंह का पौत्र मानसिंह जोधपुर के इतिहास में हुए महान राजाओं की कड़ी का एक अद्भुत नगीना था। वह बुद्धिमान, गुणी और विद्वान राजा था। उसने जोधपुर में पुस्तक प्रकाश के नाम से कई हजार पुस्तकों का ग्रंथालय स्थापित किया। उसने श्रीमद्भागवत के दशम स्कंध के प्रथम बत्तीस अध्यायों का भाषा में पद्यानुवाद किया जो कृष्ण विलास के नाम से प्रकाशित हुआ। उसने रामायण, दुर्गा चरित्र, शिव पुराण, शिव रहस्य, नाथ चरित्र आदि अनेक धार्मिक ग्रंथों के आधार पर बड़े-बड़े चित्र बनवाये। मानसिंह के समय में जोधपुर में दुर्ग के भीतर जैपोल, जनानी डेवढ़ी के सामने की दीवार, आयस देवनाथ की समाधि, लोहापोल के सामने का कोट, जैपोल और दखना पोल के बीच का कोट, चौकेलाव से रानीसर तक का मार्ग, उसकी रक्षा के लिये दीवार, भैंरू पोल, चतुर्सेवा की डेवढ़ी पर का नाथजी का मंदिर और भटियानी का महल बनवाया गया। जोधा, विजय सिंह तथा मानसिंह के बारे में कहा जाता है-
जोध बसायो जोधपुर ब्रिज कीन्ही ब्रिजपाल।
लखनऊ काशी दिल्ली मान कियो नेपाल।।
अर्थात्- जोधा ने जोधपुर बसाया और विजयसिंह ने वैष्णव सम्प्रदाय के मंदिर बनवाकर इसे ब्रज भूमि बना दिया। महाराजा मानसिंह ने गवैयों, पण्डितों और योगियों को बुलाकर इसे लखनऊ, काशी, दिल्ली और नेपाल बना दिया।
महाराजा तख्तसिंह के समय जोधपुर में रानीसर, पदमसर, गुलाबसागर, बाईजी का तालाब और फतैसागर की दीवारों तथा उनकी नहरों का विस्तार किया गया। बाईजी के तालाब के पैंदे का निर्माण किया गया। गुलाबसागर पर के राजमहल, मंडी की घाटी का चबूतरा, गंगश्यामजी के मंदिर के नीचे की पूर्व की तरफ की दुकानें, मंडी में सायर का मकान और कोतवाली के मकान बनाये गये। जोधपुर नगर से बाहर विद्यासाल, बालसमंद के महल, छैलबाग के महल, कायलाना के महल, तखतसागर आदि का निर्माण करवाया गया। उसकी रानजी जाडेजी ने बालसमंद के पास देवराजी के तालाब पर महल और बाग बनवाया था। तख्तसिंह की परदायत मगराज ने नागौरी दरवाजे के बाहर और लछराज ने जालोरी दरवाजे के बाहर अपने-अपने नाम पर बावलियां बनवाईं तथा तख्तसिंह की माता चावड़ीजी ने तबेले के सामने फतेबिहारीजी का मंदिर बनवाया। चामुण्डा माता मंदिर का दुबारा निर्माण करवाया जो कि बारूदखाने के विस्फोट में उड़ गया था।
महाराजा जसवंतसिंह के समय जोधपुर का जैसे नये सिरे से निर्माण किया गया। उसके समय में 3 जुलाई 1876 को अंग्रेजी भाषा की शिक्षा के लिये जोधपुर में राजकीय स्कूल खुला। उसके समय में जोधपुर में पहली बार रेलगाड़ी आई। पहली बार डाकखाने खुले। बालसमंद बांध से नहरों के माध्यम से जोधपुर में पेयजल लाने की व्यवस्था की गई। राजकीय छापाखाने की स्थापना हुई। नागौरी दरवाजे से किले पर जाने के लिये सड़क बनाई गई। उच्च शिक्षा के लिये जसवंत कॉलेज की स्थापना हुई। अंग्रेजी पद्धति की चिकित्सा के लिये 15 हॉस्पीटल खुले। डाक-तार और सड़कों की व्यवस्था हुई। वन विभाग स्थापित किया गया। म्युनिसिपैलिटी खोली गई। जसवंतसागर बांध बना। महाराजा जसवंतसिंह से लेकर महाराजा उम्मेदसिंह के समय तक जोधपुर को प्रधानमंत्री के रूप में सर प्रताप की सेवाएं प्राप्त हुईं। आधुनिक जोधपुर की रूपरेखा बहुत कुछ उनकी निर्धारित की हुई है। वे महाराजा जसवंतसिंह के छोटे भाई थे।
महाराजा सरदारसिंह के समय में तलहटी के महलों में जोधपुर राज्य का पहला फीमेल हॉस्पीटल खुला। उसके समय में नगर में यातायात को सुचारू बनाने के लिये फुलेलाव तालाब के पास का पहाड़ काटकर नई सड़क बनाई गई और नगर की सड़कों पर प्रकाश की व्यवस्था की गई। गिरदी कोट नामक पुरानी नाज की मण्डी में सरदार मार्केट और घण्टाघर तथा किले के पास जसवंत थड़ा बना। उसके समय में जोधपुर रियासत में 1 स्नातक कॉलेज, 1 हाई स्कूल, 16 वर्नाक्यूलर स्कूल, 44 एंग्लो वर्नाक्यूलर स्कूल, 1 राजपूत नोबेल स्कूल, 1 संस्कृत स्कूल, 1 नॉर्मल स्कूल, 25 राजकीय सहायता प्राप्त स्कूल, 89 डाकखाने और 23 हॉस्पीटल कार्य करने लगे थे। रेलवे लाइन की लम्बाई 525 मील हो गई तथा सरदार समंद, हेमावास एवं एडवर्ड समंद के कार्य प्रारंभ हुए।
महाराजा सुमेरसिंह के समय चौपासनी में राजपूत हाई स्कूल का उद्घाटन हुआ, जोधपुर में सरदार म्यूजियम की स्थापना हुई तथा सुमेर पब्लिक लाइब्रेरी खोली गई। महाराजा उम्मेदसिंह को आधुनिक जोधपुर का निर्माता कहा जा सकता है। उसके समय में दरबार हाई स्कूल का भवन तथा जसवंत कॉलेज का नया हिस्सा बना। जोधपुर में इम्पीरियल बैंक की शाखा खोली गई। ई.1929 में उम्मेद पैलेस की नीवं रखी गई। जोधपुर रियासत का सबसे बड़ा अस्पताल बना जिसे अब महात्मा गांधी अस्पताल कहा जाता है।
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