महाराणा प्रताप का संघर्षपूर्ण जीवन


अकबर लगभग पुरे मेवाड़ पर अपना अधिपत्य जमा चूका था. और राणा प्रताप के पास बहुत बड़ी चुनौती थी. पर राणा प्रताप ने इस चुनौतीपूर्ण कार्य को भी बड़ी ही सरलता के साथ पूरा करते गए, एक एक करके महाराणा प्रताप ने अपनी मातृभूमि को मुगलों के चंगुल से स्वतंत्र कराते गए. जब ये बात अकबर को पता लगी तो उसे जरा भी आश्चर्य नहीं हुआ क्योंकि हल्दीघाटी के इस विशाल युद्ध में जिस तरह से प्रताप और उनके वीरों ने अपना शोर्य दिखाया था उससे तो ये स्पष्ट ही था की मेवाड़ में मुग़ल सेना ज्यादा दिन तक टिक नहीं सकती है. अतः मेवाड़ को जीतने के स्थान में अकबर ने सदा राणा को पकड़ने के लिए दबदबा बनाये रखा. राणा के बहादुर साथी और भील सदा ही उनकी रक्षा अपने प्राणों पर खेल कर करते रहे उधर महाराणा प्रताप हल्दीघाटी की युद्ध में अकबर की नींद को उदा देने के बाद बिठुर की जंगलों में जा छिपे थे. उनके परिवार को उनके पास सुरक्षित बुला लिया गया था. उनकी स्थिति बहुत ही दैन्य हो गयी थी, जंगलों में मुग़ल सैनिकों से बचते बचाते वे अनेक प्रकार का कष्ट झेल रहे थे. उन्हें सबसे ज्यादा कष्ट तब होता था जब उनकी जान बचाने के लिए कोई आगे बढ़कर अपनी जान दे देता था. हल्दीघाटी की युद्ध के बाद अकबर की नींद उड़ गयी थी . उसे डर था की समस्त राजपूताने के राजपूत के दिल में कहीं राणा प्रताप के लिए प्यार और इज्जत ना पैदा हो जाये. हल्दीघाटी का रण कौशल ने प्रताप का पद ऊँचा कर दिया था, उस समय की स्थिति ऐसी हो गयी थी की राजपूताना ही नहीं बल्कि समस्त भारतवर्ष में राणा प्रताप और उनके वीर चेतक की गाथा सुने जाने लगी थी, कवि राणा प्रताप की वीरता में कविता लिखने लगे थे, स्त्रियाँ राणा प्रताप की वीरता और शोर्य के गीत गाने लगी थी, देश का माहौल में अजीब सा बदलाव नजर आने लगा था, इस बदलाव में राणा प्रताप की तरह भारतवासी गुलामी की बेड़ियों से आजाद होकर स्वाधीन होने के सपने देखने लगे थे. बच्चे मेवाड़ के पराक्रम को बड़े ही ध्यान से सुनने लगे थे, जगह जगह नाट्य रूपांतरण के द्वारा महाराणा प्रताप की शूरवीरता को दर्शाया जाने लगा और अकबर को धोखे से छलने वाला, कपटी और धूर्त बताने लगे थे. असहाय और साधनहीन महाराणा अपनी तथा अपने परिवार की प्रतिष्ठा बचाने के लिए भीलों की मेहरबानी पर दिन काट रहा था और अकबर उसे जिन्दा या मुर्दा पकड़ने के लिए भीलों की टोली को जंगल जंगल भेज रहा था. मुग़ल सैनिक महाराणा के नाम से थर्राते थे. परन्तु अकबर के आदेश के आगे विवश थे. अनेक सैन्य टुकड़ियाँ विभिन्न जंगलों में राणा प्रताप की टोह में लगी थी. राणा प्रताप की सुरक्षा के लिए भील अपना सब कुछ दाँव पर लगा दिए थे. अनेक बार ऐसे अवसर भी आये की कई बार मुग़ल सैनिक टोह लेते लेते राणा प्रताप के बिलकुल ही पास आ पहुंचे और छापामार कर बस उन्हें पकड़ने ही वाले थे की सही वक़्त पर भीलों की टोलियाँ ने उन्हें आगे बढ़कर चुनौती दी. मुग़ल सैनिक के साथ मुठभेड़ में अनेक भीलों ने अपनी जाने गँवा दी और राणा प्रताप को अपने छिपने के स्थान से भाग जाने का अवसर प्रदान किया. भीलों की कुर्बानियों के कारण राणा प्रताप का मन बुरी तरह से दुखी हो गया. ऊपर से उनकी पत्नी तथा बच्चों के शारीर भूख का ताप सहते सहते सूख कर हड्डियों का ढांचा मात्र रह गए थे. मन के साथ साथ महाराणा का शरीर भी टूटने लगा था. उनकी समझ में नहीं आ रहा था की क्या करे. जंगलों में छिप कर रहने से उनकी बहरी दुनिया से संपर्क बिलकुल ही टूट गया था. उनके परिवार के अन्य सदस्यों का भार भीलों ने विभिन्न स्थानों में उठाया हुआ था. राणा तक यह समाचार बराबर पहुँच रहे थे की मेवाड़ की जनता अपने राणा पर गर्व करते है, वे अपने राणा पर अपना तन मन धन सब कुछ न्योछावर करने को तैयार है, किन्तु कंदराओं में छिप कर जनत अक सहयोग कैसे लिया जा सकता था. राजपूत जाति के बिखराव और पतन में कोई कमी नहीं रह गयी थी. स्वयं महाराणा प्रताप के भाई और भतीजे विरोधी खेमे में चले गए थे. अनेक राजपूत आकबर की अधीनता को स्वीकार कर चुके थे. इन्ही राजाओं की शक्ति के कारण अकबर ने राणा को चारों ओर से घेर रखा था. कई राजपूत राजाओं ने मेवाड़ के कई हिस्सों में अपना अधिकार जमा लिया था. लगभग पूरा मेवाड़ फिर से अकबर के अधीन हो चूका था. ऐसे में राणा प्रताप के सब्र का बाँध टूट गया. महाराणा की पत्नी ने किस तरह घास-पात एकत्रित की, उनसे कुछ रोटियां बनाई और कई दिनों से भूखे दोनों बच्चों के सामने रख दी. इतने में जंगल से एक बिलाव आया और बच्चों के आगे से रोटियां उठा के ले गया. अब किसी भी तरह से रोटियां नहीं बनाई जा सकती थी और बच्चे भूख से बिलख रहे थे. बच्चों को रोता देख पत्नी भी दुखी हो गयी.


पृथ्वीराज द्वारा महाराणा को प्रोत्साहित करना:-

  • अपने बच्चों को भूखा देखकर अब राणा प्रताप का धैर्य टूट गया था. उन्होंने सोचा की वो तो भूखा रह सकते है परन्तु अपने बच्चों को भूखा नहीं देख सकते है. इस विचार से उन्होंने तुरंत अकबर को एक संधि पत्र लिख डाला. और अपने अनुचर के हाथों अकबर के पास भेजवा दिया. अपनी पत्नी जोशाबाई की मृत्यु के पश्चात् पृथ्वीराज बहुत परेशान रहने लगा था. उसका मन होता था की किस तरह बस महाराणा प्रताप के पास पहुँच जाए और एक सच्चे राजपूत की तरह अकबर से बदला लिया जाए,परन्तु स्थितियां इतनी प्रतिकूल थी की राजपूतों को अकबर की दया पर जीना पद रहा था. राजपूतों का एकमात्र आशा दीप राणा प्रताप अकबर के प्रकोप से बचने के लिए जंगल जंगल भटक रहा था. ऐसे में अकबर से बदला लेना असंभव था और बदला लिए बगैर पृथ्वीराज का मन उसे चैन से सांस लेने नहीं दे रहा था. उसका मन अकबर से विद्रोह के लिए चीत्कार रहा था. मन के चीत्कार को दबाते हुए उसने शाही दरबार में प्रवेश किया. अकबर के सामने झुककर सलाम किया और आसन पर बैठ गया. उसने देखा की मुग़ल सम्राट आज कुछ ज्यादा ही खुश है. सब दरबारी जब अपने अपने आसन पर बैठ गए तो अकबर ने ये घोषणा की कि राणा प्रताप ने हमें संधि भेजा है. सारे दरबारी आश्चर्य से देखने लगे, दरबार में कौतुहल का माहौल बन गया, सब कहने लगे असंभव ये नहीं हो सकता....ये तो अनहोनी हो गयी. क्षण भर में ही अनेक प्रतिक्रियां दरबार भर में गूँज गया. अकबर को अपने कानो पर विश्वास करना मुस्किल हो रहा था, दरबार में ये पहली बार हुआ था की दरबार की मर्यादा को भूल सभी दरबारी बस अपनी प्रतिक्रिया देते चले गए. कूटनीतिज्ञ अकबर ने संक्षिप सी घोषणा करने के बाद एक एक करके सभी दरबारियों का चेहरा देखा. राजपूतों के चेहरे में आये भावों को पढ़कर अकबर दहल गया.अधिकांश राजपूत के चेहरे टन गए, कुछ राजपूत उदास हो गए और उनमें से कुछ झूठी प्रसन्नता के भाव व्यक्त करने लगे, जाहिर सी बात है की यह समाचार सुनकर उन्हें ख़ुशी नहीं हुई थी. संधि पत्र की बात सुनकर पृथ्वीराज घम्भीर हो गए थे, राजा पृथ्वीराज के सीने में एक हुक सी उठी जिसे दबाने के लिए वे पूरी शक्ति से प्रयास कर रहे थे. उसी समय अकबर ने राजा पृथ्वीराज को टोक दिया आपका क्या मत है राजा साहब? पृथ्वीराज अपने आसन से उठे और बोले असंभव जहाँपनाह......मुझे तो लगता है संधि पत्र जाली है..महाराणा प्रताप संधि पत्र लिख नहीं सकते है. क्यों राणा भी आखिर एक इंसान है इतने दिनों तक कष्ट सहते सहते तंग आ गए होंगे. उनके पास मुग़ल सल्तनत से टकराने के लिए बचा ही क्या है. अकबर ने य्दयापी सच बात बोली थी,परन्तु ये बात राजपूतों को अच्छी नहीं लगी. पृथ्वीराज तो अकबर की बात से बौखला गए और बोले –महाराणा प्रताप कोई साधारण इंसान नहीं है...वे सिर झुकाने की बजाये सिर कटाने में विश्वास रखते है. अकबर मुस्कुराया और कहा आपकी बात में दम है राज साहब..हम सब लोग आपसे इत्तेफाक रखते है परन्तु एक बात तो आप मानेगें ना की मुग़ल सल्तनत से हाथ मिलाने का अर्थ सिर झुकाना नहीं बल्कि सिर उठा कर साथ साथ चलना है, ये हम सब का ही तो सल्तनत है. राजा पृथ्वीराज का पारा चढ़ा हुआ था वो चुप नहीं रह सके उन्होंने कहा की – प्रताप एक अलग किस्म के इंसान है मुझे नहीं लगता है की ये संधि पत्र उनका है अगर आपकी इजाजत हो तो मैं स्वयं इसकी तहकीकात करना चाहूँगा. “इजाजत है“- आप अपने स्तर से तहकीकात कीजिये और सच्चाई जानकर हमें ज्ञान दीजिये. इतना कहकर अकबर उठ गया. जो कुछ भी दरबार में हुआ उससे उसका मन खिन्न हो गया. परन्तु वो इतना घम्भीर व्यक्ति था की अपनी मन की खिन्नता किसी के सामने जाहिर नहीं होने दी. राजा पृथ्वीराज सीधे घर पहुंचा और उन्होंने महाराणा प्रताप को कवि की मार्मिक छंदबद्ध लम्बा पत्र लिखा और महाराणा के पास भिजवा दिया. उन दिनों महाराणा प्रताप के भाई शक्तिसिंह मुगलों के गिरफ्त से भागकर राजपूत बहुल क्षेत्रों में चले गए थे और अकबर के अधीन राजपूत क्षेत्रों में घूम घूम कर महाराणा प्रताप के नाम से सेना का गठन कर रहे थे. ऐसा जादू था महाराणा के नाम में की जो सुनता वह उनके लिए आगे बढ़कर सहयोग देने को तैयार हो जाता. गांव गांव घूम कर शक्तिसिंह ने प्रताप के नाम से सेना का संगठन किया. मुगलों के अधीन किन सहारा का दुर्ग जीत लिया. यद्यपि शक्तिसिंह को अनेक राजपूत बुजुर्गों की नाराजगी झेलनी पड़ी. शक्तिसिंह की करतूत के बारे मैं जिन्हें पता था वो पहली मुलाकात में ही शक्तिसिंह से बिगड़ जाता था परन्तु जब शक्तिसिंह अपने पश्चाताप की बातें बताता तब उन्हें विश्वास हो जाता था की जो उनके सामने खड़ा है वो महाराणा प्रताप का विरोधी नहीं बल्कि महाराणा प्रताप के लिए शक्ति अर्जित करने वाला शेर दिल राजपूत है.उनकी सेना में सम्मिलित होने के लिए युवक और अधेड़ उम्र के व्यक्ति पुरे जोश और लगन के साथ आने लगे थे. शक्तिसिंह की केवल एक ही इच्छा थी की वे एक बड़ी सेना का गठन कर, अपने भाई राणा प्रताप से मिले और उनसे उस सेना का नेतृत्व करा कर मुगलों से टक्कर लेने का निवेदन करें, परन्तु एक दिन शक्तिसिंह के कानो तक राणा प्रताप की संधि की बात पहुंची शक्तिसिंह को अपने कानो में विश्वास नहीं हुआ वे बिलकुल भी नहीं चाहते थे की महाराणा अकबर के सामने झुके. वे तुरंत बिठुर के जंगलों की ओर चल दिए और पता लगाते लगाते राणा प्रताप के पास जा पहुंचे. राणा प्रताप के पास उस समय अनेक सरदार मिलने को आये हुए थे सभी उनसे यही निवेदन कर रहे थे की मुगलों से संधि कर वो अपने आप को छोटा ना करें. राणा के लिए वे कुछ भी करने को तैयार थे. ऐसे समय में शक्तिसिंह ने क्षमायाचना के बाद अपने दुर्ग और अपने सेना का पूरा विवरण प्रताप सिंह को दिया और उनसे निवेदन करने लगे की वे इरादा बदल दे, अन्यथा राजपूतों का सूरज सदा के लिए डूब जायेगा. राणा प्रताप भी पुरे मन से संधि के लिए तैयार नहीं थे, परन्तु युद्ध के लिए जितनी तैयारी की आवश्यकता थी, वह सब जुटा पाना असंभव सा लग रहा था. बिना धन के इतनी बड़ी सेना का संगठन कैसे संभव था की मुग़ल सेना से टक्कर ली जा सके. उसी समय महाराणा को पृथ्वीराज का पत्र मिला. महाराणा ने बड़ी ही गंभीर मुद्रा में उस पत्र को पढ़ा- उस पत्र का आशय था यदि आप अकबर की अधीनता को स्वीकार कर लेंगे तो संसार से वीरता का इतिहास मिट जायेगा. सूर्य पश्चिम में उदय होने लगेगा और पूर्व दिशा में अस्त होने लगेगा. सब कुछ उलट पलट हो जायेगा. जिन राजपूतों ने अकबर के सामने घुटने टेक दिए है, सच्चाई तो ये है की वे राजपुत भी नहीं चाहते की प्रताप सिंह अकबर के सामने घुटने टेके. अंत में पृथ्वीराज ने लिखा की – अंत में मुझे ये बताये की मैं अपनी मुछे ऊँची रखु या कटवा डालूं, और राजपूतों की विवशता पर अपना माथा ठोक लूँ? पत्र पढ़ते पढ़ते महाराणा का मुख लाल हो गया. उनकी बाँहें फड़कने लगी उनके मस्तक में एक नई सी चमक आ गयी. वे खड़े हो उठे और कहने लगे नहीं नहीं मैं कभी नहीं झुकूँगा, प्रताप सिंह को ये कहते सुन सबके चेहरे में फिर से चमक आ गयी. उसके बाद प्रताप अपने सभी साथियों के साथ एक नई सेना के गठन के मुद्दे पर विचार विमर्श करने में जुट गए. विचार विमर्श करने के बाद सभी लोग इस निष्कर्ष पर पहुंचे की नई सेना के गठन के लिए मेवाड़ के पास धन का आभाव है. ये एक बहुत बड़ी समस्या था की आखिर धन कहाँ से जुटाया जाए. धन के आभाव में ही राणा प्रताप के सेना के कई सैनिक उनको छोड़ चुके थे.


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