जयमल जी मेड़तीया की अठे क उठै ( यहाँ कि वहाँ )


 दिल्ली के मुग़ल बादशाह ने मेवाड़ चित्तौड़ पर आक्रमण की योजना की और खुद 60000 मुगलो की सेना लेकर मेवाड़ आया।उस वक़्त महाराणा उदय सिंह भी लोहा लेने को तैयार हुए अपने पूर्वज बाप्पा रावल राणा हमीर राणा कुम्भा राणा सांगा के मेवाड़ी वंसज तैयार हुए पर मेवाड़ के तत्कालीन ठाकुरो/उमरावो ने उदय सिंह जी को मेवाड़ हित में कहा की आप न लडे क्यों की आपको उदयपुर और कुंभलगढ़ में सेना मजबूत करनी है ।अंत ना मानने पर भी उमरावो ठाकुरो ने उन्हें कुंभलगढ़ भेज दिया और फैसला किया मेड़ता के दूदा जी पोते वीरो के वीर शिरोमणि जयमल मेड़तिया को चित्तोड़ का सेनापति बना भार सोपने का और जयमल के साले जी पत्ता जी चुण्डावत को उनके साथ नियुक्त किया गया।

खबर मिलते ही जयमल जी और उनके भाई बन्धु प्रताप सिंह और दूसरे भाई भतीजे राठौड वीरो की तीर्थ स्थली चित्तोड़ की और निकल पड़े ।निकलते ही अजमेर के आगे मगरा क्षेत्र में उनका सामना हुआ वहा बसने वही रावत जाति के लूटेरो से!!!!!

भारी लाव लश्कर और जनाना के साथ जयमल जी को लूटेरो ने रोक दिया एक लूटरे ने सिटी बजायी देखते ही देखते एक पेड़ तीरो से भर गया सभी समझ चुके थे की वे लूटेरो से घिरे हुए है ।
तभी भाई प्रताप सिंह ने कहा की "अठे या वटे" जयमल जी ने कहा "वटे" तभी जनाना आदि ने सारे गहने कीमति सामान वही छोड़ दिया और आगे चल पड़े लूटेरो की समझ से ये बाहर था कि एक राजपूत सेना जो तलवारो भालो से सुसज्जित है वो बिना किसी विवाद और लडे इतनी आसानी से कैसे छोड़ जा सकते है।अभी जयमल की सेना अपने इष्ट नाथद्वारा में श्रीनाथ जी के दर्शन ही कर रही थी कि तभी लूटेरे फिर आ धमके और सरदार ने जयमल जी से कहा की ये "अटे और वटे" क्या है ????

तब वीर जयमल मेड़तिया ने कहा की यहाँ तुमसे धन के लिए लडे या वहा चित्तौड़ में तुर्को से ?
तभी लूटेरे सरदार की आँखों में आंसू आ गए और उसने जयमल जी के पैेरो में गिर कर माफ़ी मांगी और अपनों टुकड़ी को शामिल करने की बात कही पर जयमल जी ने कहा की तुम लूटपाठ छोड़ यहाँ मुगलो का सामना करो।अतः लूटेरे आधे रास्ते वीरो को छोड़ने आये और फिर लोट गए|

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